Tuesday 5 April 2016

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चन्दा-II | जयशंकर प्रसाद | कहानी | Chanda-II | Jayshankar Prasad | Hindi story|

'चन्दा' कहानी के इस भाग में;
     जब हीरा लौट के नहीं आता तो रजा उसकी मदद के लिए एक कोल को  भेजेते हैं | वह कोल रामू होता है जो हीरा के मदद करने की जगह उसे मौत के मुंह में धकेल देता है और वह कोल-पति बन जाता | चन्दा हीरा के क़त्ल... 
     यह बात राजा साहब को विदित हुई | उन्होंने उसकी मदद के लिए कोलों को जाने की आज्ञा दी | रामू उस अवसर पर था | उसने सबके पहले जाने के लिए पैर बढ़ाया, और चला | वहां जब पहुंचा, तो उस दृश्य को देखकर घबड़ा गया, और हीरा से कहा---हाथ ढीला कर; जब यह छोड़ने लगे, तब गोली मारूँ, नहीं तो सम्भव है कि तुम्ही को लग जाय |
     हीरा---नहीं, तुम गोली मारो |
     रामू---तुम छोड़ो तो मैं वार करूं |
     हीरा---नहीं, यह अच्छा नहीं होगा |
     रामू---तुम उसे छोड़ो, मैं अभी मारता हूँ |
     हीरा---नहीं, तुम वार करो |
     रामू---वार करने से संभव है कि उछले और तुम्हारे हाथ छूट जाएँ,तो यह तोड़ डालेगा |
     हीरा---नहीं, तुम मार लो, मेरा हाथ ढीला हुआ जाता है |
     रामू---तुम हद करते हो, मानते नहीं |
     इतने में हीरा का हाथ कुछ बात-चीत करते-करते ढीला पड़ा; वह चीता उछलकर हीरा के कमर के को पकड़कर तोड़ने लगा |
     रामू खड़ा होकर देख रहा है, और पैशाचिक आकृति उस घृणित पशु के मुख पर लक्षित हो रही, और वह हँस रहा है |
     हीरा टूटी हुई साँस से कहने लगा---अब भी मार ले |
     रामू ने कहा---अब तू मर ले, तब वह भी मारा जायेगा | तूने हमारा हृदय निकाल लिया है, तूने हमारा घोर अपमान किया है, उसी का प्रतिफल है | इसे भोग |
     हीरा को चीता खाये डालता है; पर उसने कहा---नीच ! तू जानता है कि 'चंदा' अब मेरी होगी | कभी नहीं ! तू नीच है---इस चीते से भी भयंकर जानवर हो |
     हीरा ने टूटी हुई आवाज से कहा-तुझे इस विश्वासघात का फल शीघ्र मिलेगा और चन्दा फिर हमसे मिलेगी | चन्दा...प्यारी..च...
     इतना उसके मुख से निकला ही था की चीते ने उसका सिर दांतों के तले दाब लिया | रामू देखकर पैशाचिक हँसी हँस रहा था | हीरा के  समाप्त हो जाने पर रामू लौट आया, और झूठी बातें बनाकर राजा से कहा कि उसको हमारे जाने के पहले ही चीता ने मार दिया | राजा बहुत दुःखी हुए, और जंगल की सर्दारी रामू को मिली |
     वसंत की राका चारों ओर अनूठा दृश्य दिखा रही है | चन्द्रमा न मालूम किस लक्ष्य की ओर दौड़ा चला जा रहा है; कुछ पूछने से भी नहीं बताता | कुटज की कली का परिमल लिए पवन भी न मालूम कहाँ दौड़ रहा है, उसका भी कुछ समझ नहीं पड़ता | उसी तरह, चंद्रप्रभा के तीर पर बैठी हुई कोल-कुमारी का कोमल कंठ-स्वर भी किस धुन में है---नही ज्ञात होता |
     अकस्मात गोली की आवाज ने उसे चौंका दिया | गाने के समय जो उसका मुख उद्वेग और करुणा से पूर्ण दिखाई पड़ता था, वह घृणा और क्रोध से रंजित हो गया, और वह उठकर पुच्छमर्दिता  सिंहनी के समान तनकर खड़ी हो गई, और धीरे से कहा---यही समय है | ज्ञात होता है, राजा इस समय शिकार खेलने पुनः आ गये हैं---बस वह अपने वस्त्र को ठीक करके कोल-बालक बन गई, और कमर में से एक चमचमाता हुआ छूरा निकालकर चूमा | वह चांदनी में चमकने लगा | फिर वह कहने लगी---यद्यपि तुमने हीरा का रक्तपान कर लिया है, लेकिन पिता ने रामू से तुम्हे ले लिया था | अब तुम हमारे हाथ में हो, तुम्हें आज रामू का भी खून पीना होगा |
     इतना कहकर वह गोली के शब्द की ओर लक्ष्य करके चली | देखा कि तहखाने में राजासाहब बैठे हैं | शेर को गोली लग चुकी है, और वह भाग गया है, उसका पता नही लग रहा है, रामू सर्दार है, अतएव उसको खोजने के लिए आज्ञा हुई, वह शीघ्र ही सन्नद्ध हुआ | राजा ने कहा---कोई साथी लेते जाओ |  
     पहले तो उसने अस्वीकार किया, पर जब एक कोल-युवक स्वयं साथ चलने को तैयार हुआ, तो वह नही भी न कर सका, और सीधे---जिधर शेर गया था, उसी ओर चला | कोल-बालक भी उसके पीछे है | वहां घाव से व्याकुल शेर चिंघाड़ रहा है, इसने जाते ही ललकारा | उसने तत्काल ही निकलकर वार किया | रामू कम साहसी नहीं था, उसने उसके खुले हुए मुंह में निर्भीक होकर बन्दूक की नाल डाल दी; पर उसके जरा-सा मुहं घुमा लेने से गोली चमड़ा छेदकर पार निकल गई, और शेर ने क्रुद्ध होकर दांत से बन्दूक की नाल दबा ली | अब दोनों एक दुसरे को ढकेलेने लगे; पर कोल-बालक चुपचाप खड़ा है | रामू ने कहा---मार, अब देखता क्या है !
     युवक---तुम इससे बहुत अच्छी तरह लड़ रहे हो |
     रामू---मारता क्यों नहीं ?
     युवक---इसी तरह शायद हीरा से भी लड़ाई हुई थी, क्या तुम नहीं लड़ सकते ?
     रामू---कौन, चन्दा ! तुम हो ? आह, शीघ्र मारो, नहीं तो अब यह सबल हो रहा है |
     चन्दा ने कहा---हाँ, लो, मैं मारती हूँ, इसे छूरे से हमारे सामने तुमने हीरा को मारा था, यह वही छूरा है, यह तुझे दुःख से निश्चय ही छुड़ावेगा---इतना कहकर चन्दा ने रामू की बगल में छूरा उतार दिया | वह छटपटाया | इतने ही में शेर को मौका मिला, वह भी रामू पर टूट पड़ा और उसका इति कर आप भी वहीं गिर पड़ा |
     चन्दा ने अपना छूरा निकाल लिया, और उसको चांदनी में रंगा हुआ देखेने लगी, फिर खिलखिलाकर हंसी और कहा---'दरद दिल काहि सुनाऊं प्यार' ! फिर हंसकर कहा---हीरा ! तुम देखते होगे, अपर अब तो यह छूरा ही दिल की दाह सुनेगा | इतना कहकर अपनी छाती में उसे झोंक लिया और उसी जगह गिर गई, और कहने लगी-हीरा...हम...तुमसे...मिले ही.... ....
     चन्द्रमा अपने चन्द्र प्रकाश में यह सब देख रहा था |


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