Thursday 31 March 2016

// // Leave a Comment

चन्दा -I | जयशंकर 'प्रसाद' | कहानी | Chanda-I | Jayshankar 'Prasad' | Hindi Story|


'चन्दा' दो कोल युवक-युवती की प्रेम कथा है | इस कहानी के लेखक श्री जयशंकर 'प्रसाद' हैं | इस कहानी में चन्दा और हीरा एक दुसरे से प्रेम करते हैं पर चन्दा का सम्बन्ध एक अन्य रामू नामक कोल से तय हो चूका था | रामू हीरा को मारने का प्रयास करता है पर हीरा को जंगल का एक वृद्ध जो कोल-पति है, बचा लेता है | वृद्ध कोल हीरा और चन्दा का ब्याह करा देता है तथा हीरा को अपना पद भी सौंप देता है | जंगल में एक दिन राजा शिकार करने आता है | इस दौरान ...

चैत्र-कृष्णाष्टमी का चन्द्रमा अपना उज्जवल प्रकाश 'चंद्रप्रभा' को निर्मल जल पर डाल रहा है | गिरी-श्रेणी के तरुवर अपने रंग को छोड़कर ध्वलित हो रहे हैं; कल-नादिनी समीर के संग धीरे-धीरे बह रही है | एक शिला-ताल पर बैठी हुई कोल-कुमारी सुरीले स्वर से---'दरद-दिल काहि  सुनाऊँ प्यारे! दरद'... गा रही है |
     गीत अधुरा ही है कि अकस्मात एक कोल-युवक धीर-पद-संचालन करता हुआ उस रमणी के सम्मुख आकर खड़ा हो गया | उसे देखते ही रमणी की हृदय-तंत्री बज उठी | रमणी बाह्य-स्वर भूलकर आन्तरिक स्वर से सुमुधर संगीत गाने लगी और उठकर खड़ी हो गई | प्रणय के वेग को सहन न करके वर्षावारिपूरिता स्रोतस्विनी के समान कोल-कुमार के कंध-कूल से रमणी ने आलिंगन किया |
     दोनों उसी शिला पर बैठ गए, और निनिर्मेष सजल नेत्रों से परस्पर अवलोकन करने लगे | युवती ने कहा----तुम कैसे आये ?
     युवक---जैसे तुमने बुलाया |
     युवती---( हंसकर ) हमने तुम्हे कब बुलाया ! और क्यों बुलाया !
     युवक---गाकर बुलाया और दरद सुनाने के लिए |
     युवती---( दीर्घ निश्वास लेकर ) कैसे क्या करूँ ? पिता ने तो उसी से विवाह करना निश्चय किया है |
     युवक---( उत्तेजना से खड़ा होकर ) तो जो कहो, मै करने के लिए प्रस्तुत हूँ |
     युवती---( चंद्रप्रभा  की ओर दिखाकर ) बस, यही शरण है |
     युवक---तो हमारे लिए कौन दूसरा स्थान है ?
     युवती---मै तो प्रस्तुत हूँ |
     युवक---हम तुम्हारे पहले |
     युवती ने कहा---तो चलो |
     युवक ने मेघ-गर्जन-स्वर से कहा---चलो |
उतरकर चंद्रप्रभा के तट पर आए, और एक शिला पर खड़े हो गए | तब युवती ने कहा---अब विदा !
     युवक ने कहा---किससे ? मै तो तुम्हारे साथ---जब तक सृष्टि रहेगी तब तक ---रहूँगा |
     इतने ही में शाल-वृक्ष के नीचे एक छाया दिखाई पड़ी और वह इन्हीं दोनों की ओर आती हुई दिखाई देने लगी | दोनों ने चकित होकर देखा की एक कोल खड़ा है | उसने गंभीर स्वर से युवती से पुछा---चन्दा  ! तू यहाँ क्यों आई ?
     युवती---तुम पूछनेवाले कौन हो !
     आगंतुक युवक---मै तुम्हारा भावी पति 'रामू' हूँ |
     युवती---मै तुमसे ब्याह न करुँगी |
     आ० यु०---फिर किससे तुम्हारा ब्याह होगा ?
     युवती ने पहले के आये युवक की ओर इंगित करके कहा---इन्हीं से |
     आगन्तक युवक से अब न सहा गया | घूमकर पूछा---क्यों हीरा ! तुम ब्याह करोगे ?
     हीरा---तो इसमें तुम्हारा क्या तात्पर्य है ?
     रामू---तुम्हे इससे अलग हो जाना चाहिए |
     हीरा--- क्यों, तुम कौन होते हो ?
     रामू---हमारा इससे सम्बन्ध पक्का हो चूका है |
     हीरा---पर जिससे सम्बन्ध होनेवाला है, वह सहमत हो तब न !
     रामू---क्यों चन्दा ! क्या कहती हो ?
     चन्दा---मै तुमसे ब्याह न करुँगी |
     रामू---तो हीरा से भी तुम ब्याह नहीं कर सकती !
     चन्दा---क्यों ?
     रामू---( हीरा से  ) अब हमारा-तुम्हारा फैसला हो जाना चाहिए, क्योंकि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं |
     इतना कहकर हीरे के ऊपर झपटकर उसने अचानक छूरे का वार किया |
     हीरा यद्यपि सचेत हो रहा था; पर उसको सम्हलने में विलम्ब हुआ, इससे घाव लग गया और वह वृक्ष थामकर बैठ गया |इतने में चन्दा जोर से क्रंदन कर उठी---साथ ही के वृद्ध भील आता हुआ दिखाई पड़ा |
     युवती मुंह ढांपकर रो रही है, और युवक रक्ताक्त छूरा लिए, घृणा की दृष्टि से खड़े हुए, हीरा की ओर देख रहा है | विमल चन्द्रिका में चित्र की तरह वे दिखाई दे रहे हैं | वृद्ध को जब चन्दा ने देखा, तो और वेग से रोने लगी | उस दृश्य को देखते ही वृद्ध कोल-पति सब बात समझ गया, और रामू के समीप जाकर छूरा उसके हाथ से ले लिया, और आज्ञा के स्वर में कहा---तुम दोनों हीरा को उठाकर नदी के समीप ले चलो  |
     इतना कहकर वृद्ध उन सबों के साथ आकर नदी-तट  पर जल के समीप खड़ा हो गया | रामू और चन्दा दोनों ने मिलकर उसके घाव को धोया और हीरा के मुंह पर छींटा दिया, जिससे उसकी मूर्छा दूर हुई | तब वृद्ध ने सब बातें हीरा से पूछीं; पूछ लेने पर रामू ने कहा---क्यों, यह सब ठीक है ?
     रामू ने कहा---सब सत्य है |
    वृद्ध---तो तुम अब चन्दा के योग्य नहीं हो, और यह छूरा भी---जिसे हमने तुम्हे दिया था---तुम्हारे योग्य नहीं है | तुम शीघ्र ही हमारे जंगल से चले जाओ, नहीं तो हम तुम्हारा हाल महाराज से कह देंगे, और उसका क्या परिणाम होगा सो तुम स्वयं समझ सकते हो | (हीरा की ओर देखकर) बेटा ! तुम्हारा घाव शीघ्र अच्छा हो जायेगा, घबड़ाना नही, चन्दा तुम्हारी ही होगी |
     यह सुनकर चन्दा और हीरा का मुख प्रसन्नता से चमकने लगा, पर हीरा ने लेटे-ही-लेटे हाथ जोड़कर कहा---पिता ! एक बात कहनी है, यदि आपकी आज्ञा हो |
     वृद्ध---हम समझ गए, बेटा ! रामू विश्वासघाती है |
     हीरा---नहीं पिता ! अब वह ऐसा कार्य नहीं करेगा | आप क्षमा करेंगे, मै ऐसी आशा करता हूँ |
     वृद्ध---जैसी तुम्हारी इच्छा |
     कुछ दिन के बाद जब हीरा अच्छी प्रकार से आरोग्य हो गया, तब उसका ब्याह चन्दा से हो गया | रामू भी उस उत्सव में सम्मिलित हुआ, पर उसका बदन मलीन और चिंतापूर्ण था | वृद्ध कुछ ही काल में अपना पद हीरा को सौंप स्वर्ग को सिधारा | हीरा और चन्दा सुख से विमल चांदनी में बैठकर पहाड़ी झरनों का कल-नाद-मय आनंद-संगीत सुनते थे |
३ 
     अंशुमाली अपनी तीक्ष्ण किरणों से वन्य-देश को परितापित कर रहे हैं | मृग-सिंह एक स्थान पर बैठकर, छाया-सुख में अपने बैर-भाव को भूलकर, ऊंघ रहे हैं | चंद्रप्रभा के तट पर पहाड़ी की एक गुहा में जहाँ कि छतनार पेड़ों की छाया उष्ण वायु को भी शीतल कर देती है, हीरा और चन्दा बैठे हैं | हृदय के अनन्त विकास से उनका मुख प्रफुल्लित दिखाई पड़ता है | उन्हें वस्त्र के लिए वृक्षगण वल्कल देते हैं; भोजन के लिये  प्याज-मेवा इत्यादि जंगली सुस्वादु फल, शीतल-स्वच्छंद पवन; निवास के लिये गिरी-गुहा; प्राकृतिक झरनों का शीतल जल उनके सब  अभावों को दूर करता है, और सबल तथा स्वच्छंद बनाने में ये सब सहायता देते हैं | उन्हें किसी की अपेक्षा नहीं करनी पड़ती | अस्तु, उन्हें सब सुखों से आनंदित व्यक्तिद्वय 'चंद्रप्रभा' के जल का कल-नाद सुनकर अपनी हृदय-वीणा को बजाते हैं |
     चन्दा---प्रिय ! आज उदासीन क्यों हो !
     हीरा---नहीं तो, मैं यह सोच रहा हूँ कि इस वन में राजा आनेवाले हैं | हमलोग यद्यपि अधीन नहीं हैं, तो भी उन्हें शिकार खेलाया जाता है, और इसमें हमलोगों की कुछ हानि भी नही है | उसके प्रतिकार में हमलोगों को कुछ मिलता है, पर आजकल इस वन में जानवर दिखाई नहीं पड़ते | इसलिये सोचता हूँ कि कोई शेर या छोटा चीता ही मिल जाता, तो कार्य हो जाता |
     चन्दा---खोज किया था ?
     हीरा---हाँ, आदमी तो गया है |
     इतने में एक कोल दौड़ता हुआ आया, और कहा---राजा आ गये हैं और तहखाने में बैठे हैं | एक तेंदुआ भी दिखाई दिया है |
     हीरा का मुख प्रसन्नता से चमकने लगा, और वह अपना कुल्हाड़ा सम्हालकर उस आगंतुक के साथ वहां पहुंचा, जहाँ शिकार का आयोजन हो चूका था |
     राजा साहब झंझरी में बन्दूक की नाल रखे हुए ताक रहे हैं | एक ओर से बाजा बज उठा | एक चीता भागता हुआ सामने से निकला | राजा साहब ने उस पर वार किया | गोली लगी, पर चमड़े को छेदती हुई पार हो गई; इससे वह जानवर भागकर निकल गया | अब तो राजा साहब बहुत ही दुःखित  हुए | हीरा को बुलाकर कहा---क्यों जी, यह जानवर नही मिलेगा ?
     उस वीर कोल ने कहा---क्यों नही ?
     इतना कहकर वह उसी ओर चला | झाड़ी में जहाँ वह चीता घाव से व्याकुल बैठा हुआ था, वहां पहुंचकर उसने देखना आरम्भ किया |क्रोध से भरा हुआ चीता उस कोल-युवक को देखते ही झपटा | युवक असावधानी के कारण वार न कर सका, पर दोनों हाथों से उस भयानक जंतु की गर्दन को पकड़ लिया, और उसने भी इसके कंधे पर अपने दोनों पंजों को जमा दिया |
     दोनों में बल-प्रयोग होने लगा | थोड़ी देर में दोनों जमीन पर लेट गये |

शेष अगले भाग में...



     

0 comments:

Post a Comment