Saturday 14 January 2017

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सदा चांदनी | बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' | कविता | Sada Chandani | Bal Krishan Sharma 'Naveen' | Hindi Poem

कवि कारावास में बंद है | कारावास के आँगन में चांदनी आ जाती जो उसे रोमांचित करती है |.....

                                                      













कुछ धूमिल-सी कुछ उज्ज्वल-सी झिलमिल शिशिर-चाँदनी छाई
मेरे कारा के आँगन में उमड़ पड़ी यह अमल जुन्हाई।

अरे आज चाँदी बरसी है मेरे इस सूने आँगन में
जिससे चमक आ गई है इन मेरे भूलुंठित कण-कण में
उठ आई है एक पुलक मृदु मुझ बंदी के भी तन-मन में
भावों की स्वप्निल फुहियों में मेरी भी कल्पना नहाई,

मैं हूँ बंद सात तालों में किंतु मुक्त है चंद्र गगन में
मुक्ति बह रही है क्षण-क्षण इस मंद प्रवाहित शिशर-व्यजन में
और कहाँ कब मानी मैंने बंधन-सीमा अपने मन में!
जन-जन-गण का मुक्ति-संदेसा ले आई चंद्रिका-जुन्हाई!

मैं निज काल कोठरी में हूँ औ' चाँदनी खिली है बाहर
इधर अंधेरा फैल रहा है फैला उधर प्रकाश अमाहर
क्यों मानूँ कि ध्वान्त अविजित जब है विस्तृत गगन उजागर
लो मेरे खपरैलों से भी एक किरण हँसती छन आई!

मास वर्ष की गिनती क्यों हो वहाँ जहाँ मन्वंतर जूझें
युग परिवर्तन करने वाले जीवन वर्षों को क्यों बूझें
हम विद्रोही, कहो हमें क्यों अपने मग के कंटक सूझें
हमको चलना है, हमको क्या, हो अंधियारी या कि जुन्हाई!
कुछ धूमिल-सी कुछ उज्ज्वल-सी हिय में सदा चाँदनी छाई!

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