Tuesday 17 January 2017

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मानव का अभिमान | हरिवंश रे बच्चन | कविता | Manav Ka Abhimaan | Harivansh Rai Bacchan | Hindi Poem

'मानव का अभिमान' हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित 'धार के इधर उधर' पुस्तक से ली गयी कविता है जिसमे कवि ने वर्तमान युग में मानव के द्वारा मानव जाति के विनाश की संभवाना प्रकट की है | तुष्ट मानव का नहीं अभिमान।

जिन वनैले जंतुओं से
था कभी भयभीत होता,
भागता तन-प्राण लेकर,
सकपकाता, धैर्य खोता,
बंद कर उनको कटहरों में बना इंसान।
तुष्ट  मानव का नहीं अभिमान।

प्रकृति की उन शक्तियों पर
जो उसे निरुपाय करतीं,
ज्ञान लघुता का करातीं,
सर्वथा असहाय करतीं,
बुद्धि से पूरी विजय पाकर बना बलवान।
तुष्ट मानव का नहीं अभिमान।

आज गर्वोन्मत्त होकर
विजय के रथ पर चढ़ा वह,
कुचलने को जाति अपनी
आ रहा बरबस बढ़ा वह;
मनुज करना चाहता है मनुज का अपमान।
तुष्ट मानव का नहीं अभिमान
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तुष्ट= satisfied

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