Friday 6 May 2016

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इक्केवाला-१| विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक' | कहानी | Ikkewala-1 | Vishwambharnath Sharma 'Kaushik' | Hindi Story

     स्टेशन के बाहर मैंने अपने साथी मनोहरलाल से कहा---कोई इक्का मिल जाय तो अच्छा है---'दस मील का रास्ता है |'
     मनोहरलाल बोले---'आइये, इक्के बहुत हैं | उस तरफ खड़े होते हैं |'
     हम दोनों चले | लगभग दो सौ गज चलने के पश्चात देखा, तो सामने एक बड़े वृक्ष के नीचे तीन-चार इक्के खड़े दिखाई दिये | एक इक्का अभी आया था और उस पर से दो आदमी अपना असबाब उतर रहे थे | मनोहरलाल ने पुकारा---'कोई इक्का गंगापुर चलेगा ?'
     एक इक्केवाला बोला---'आइये सरकार, मैं ले चलूँ | कै सवारी है ?'
     'दो सवारी---गंगापुर का क्या लोगे ?'
     जो सब देते हैं, वही आप भी दे दीजियेगा |'
     आखिर कुछ मालूम तो हो ?'
     'दो रुपये का निरख (निर्ख) है |'
     'दो रुपये ?---इतना अधेर |'
     इसी समय जो लोग अभी आये थे, उनमे और उनके इक्केवाले में झगड़ा होने लगा | इक्केवाला बोला---'यह अच्छी रही, वहाँ से डेढ़ रुपया तय हुआ, अब यहाँ बीस ही आने दिखाते हैं !'
     यात्रियों में से एक बोला---'हमने पहले ही ख दिया था कि हम बीस आने से एक पैसा अधिक न देंगे |'
     'मैंने भी तो कहा था, कि डेढ़ रुपये ससे एक पैसा कम न लूँगा |'
     'कहा होगा, हमने सुना ही नहीं |'
     'हाँ, सुना नहीं---ऐसी बात आप काहे को सुनेंगे |'
     'अच्छा तुम्हे बीस आने मिलेंगे---लेना हो तो लो, नहीं अपना रास्ता देखो |'
     इक्केवाला, जो हृष्ट-पुष्ट तथा गौरवर्ण था, अकड़ गया | बोला---'रास्ता देखे, कोई अधेर है ! ऐसे रास्ता देखले लगे, तो बस कमाई कर चुके | बाये हाथ से इधर डेढ़ रुपया रख दीजिये, तब आगे बढ़िएगा | वहाँ तो बोले, अच्छा जो तुम्हारा रेट होगा, वह देंगे, अब यहाँ कहते हैं, रास्ता देखो---अच्छे मिलें !'
     हम लोग यह कथोपकथन सुनकर इक्का करना भूल गए और उनकी बाते सुनने लगे | एक यात्री बड़ी गंभीरतापूर्वक बोला---'देखो जे, यदि तुम भलमनसी से बाते करो, तो दो-चार पैसे हम अधिक दे सकते हैं, तुम गरीब आदमी हो; लेकिन जो झगड़ा करोगे तो एक पैसा न मिलेगा |'
     इक्केवाला किंचित मुस्कराकर बोला---'दो-चार पैसे ! ओफ! ओफ ! आप तो बड़े दाता मालूम होते हैं | जब चार पैसे देते हो, तो चार आने ही क्यों नहीं दे देते ?'
     'चार आने हमारे पासे नहीं हैं |'
     'नहीं है---अच्छी बात है, तो हो आपके पास हो वही दे दीजिये---न हो न दीजिये और ज़रूरत हो तो एकाध रुपया मैं आपको दे सकता हूँ |'
     'तुम बेचारे क्या डोज, चार-चार पैसे के लिए तो तुम झूट बोलते हो और  बेईमानी करते हो |'
     अरे बाबूजी, लाखों रुपये के लिए तो मैंने बेईमानी की नहीं---चार पैसे के लिए बेईमानी करूँगा ? बेईमानी करता तो इस समय इक्का न हाकता होता | खैर, आपको जो देना हो दे दीजिये---नहीं जाइए---मैंने किराया भर पाया |'
     उन्होंने बेश आने निकालकर दिए, इक्केवाले ने चुपचाप ले लिए |
     उस इक्केवाले कका आकर-प्रकार, उसकी बातचीत से मुखे कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि अंध इक्केवालों की तरह यह साधारण आदमी नही है | इसमें कुछ विशेषता अवश्य है; अतेव मैंने सोचा कि यदि हो सके, तो गंगापुर इसी इक्के पर चलना चाहिए | यह सोचकर मैंने उससे पुछा---'क्यों भाई गंगापुर चलोगे ?'
     वह बोला---'हाँ ! हाँ ! आइए !'
     'क्या लोगे ?'
     'वही डेढ़ रुपया !'
     मैंने सोचा, अन्य इक्केवाले टी ओ दो रुपये मांगते थे, वह डेढ़ रुपया कहता है, आदमी सच्चा मालूम होता है | वह सोचकर मैंने कहा---'अच्छी बात है, चलो डेढ़ रुपया देंगे |'
     हम दोनों सवार होकर चले | थोड़ी दूर चलने पर मैं पुछा---'वे दोनों कौन थे ?' इक्केवाले ने कहा---'नारायण जाने कौन थे ? परदेशी मालूम होते हैं, लेकिन परले-सिरे के झूठे और बेईमान ! चार आने के लिए प्राण तज दे रहे थे |'
     मैंने पुछा---तो'तो सचमुच तुमसे डेढ़ रुपया ही तय हुआ था ?'
     'और नही क्या आप झूठ समझते हैं ? बाबूजी, यह पेशा ही बदनाम है, आपका कोई कसूर नही | इक्के, तांगेवाले सदा झूठे और बेईमान समझे जाते हैं | और होते भी हैं---अधिकतर तो ऐसे ही होते हैं | इन्हें चाहें आप रूपये की जगह सवा रुपया दीजिये, तब भी संतुष्ट नहीं होते |'
     मैंने पुछा---'तुम कौन जाति हो ?'
     'मैं ? वैश्य सरकार वैश्य हूँ |'
     'अच्छा ! वैश्य होकर इक्का हांकते हो ?'
     'क्यों सरकार, इक्का हाँकना कोई बुरा काम तो है नहीं ?'
     'नही, मेरा मतलब यह नहीं है कि इक्का हाँकना कोई बुरा काम है | मैंने इसलिए कहा कि वैश्य तो बहुधा व्यापार करते हैं |'
     'यह भी तो व्यापार ही है |'
     'हाँ, है तो व्यापार ही |'
     मैंने मन-ही-मन अपनी इस बेतुकी बात पर लज्जित हुआ; अतएव मैंने प्रसग बदलने के लिए पुछा---कितने दिनों से यह काम करते हो ?
     'दो बरस हो गये |'
     'इसके पहले क्या करते थे ?'
     यह सुनकर इक्केवाला गंभीर होकर बोला---'क्या बताऊँ, क्या करता था ?
     उसकी इस बात से तथा यात्रियों से उसने जो बातें कहीं थीं, उनका तारतम्य मिलाकर मैंने सोचा---इस व्यक्ति का जीवन रहस्यमय मालूम होता है | यह सोचकर मैंने उससे पुछा---'कोई हर्ज न समझो तो बताओ |'
     'हर्ज तो कोई नही हिं बाबूजी | पर मेरी बात पर लोगों को विश्वास नहीं होता | इक्केवाले बहुधा परले-सिरे के गप्पी समझे जाते हैं; इसलिए मैं किसी को अपना हाल सुनाता नही |'
     'खैर, मैं उन आदमियों में नही हूँ, यह तुम विश्वास रखो |'
     'अच्छी बात है सुनिए----'
   
   शेष अगले भाग में ....

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