फूल और कांटे
'फूल और कांटे' अयोध्या सिंह 'उपाध्याय' जी द्वारा रचित कविता है | इस कविता में कवि ने यह सन्देश देना चाहा है कि किसी का कर्म ही होता है जो उसे महानता के शिखर पर ले जाते हैं | इसमें उसका जन्म या कुल का कोई हाथ नहीं होता | इस बात को स्पष्ट करने के लिए कवि ने फूल और कांटे का चयन किया |
(१)
हैं जनम लेते जगह में एक ही,एक ही पौधा उन्हें है पालता |
रात में उनपर चमकता चाँद भी,
एक ही सी चाँदनी है डालता ||
(२)
मेघ उनपर है बरसता एक-सा,
एक-सी उनपर हवाएँ हैं बहीं |
पर सदा ही यह दिखाता है समय,
ढंग उनके एक से होते नहीं ||
(३)
छेदकर काँटा किसीकी उँगलियाँ,
फाड़ देता है किसीका वर वसन |
और प्यारी तितलियों का पर कतर,
भौंर का है बेध देता श्याम तन ||
(४)
फूल लेकर तितलियों को गोद में,
भौंर को अपना अनूठा रस पिला |
निज सुगन्धि औ' निराले रंग में,
है सदा देती कली दिल की खिला ||
(५)
खटकता है एक सबकी आंख में,
दूसरा है सोहता सुर-सीस पर
किस तरह कुल के बड़ाई काम दे,
जो किसीमें हो बड़प्पन की कसर ||